जरा हटके डेस्क। गरीबी के कारण बूढ़ा सा दिखता एक युवक ओमकार अपने पिता रामप्रसाद की जर्जर देह अपनी बाहों में समेटे अस्पताल में दाखिल होता है, काउंटर पर 250/रूपए जमा कराए और पूंछा- डाक्टर साहब अब तक आयेंगे?
12बजे ।
लेकिन अभी तो दस बजे हैं और मेरे पापा की हालत बिगड़ी जा रही है जल्दी बुला दो न,
काउंटर पर ठसक से बैठे श्रीमान बोल पड़े- तुम्हें अगर जल्दी है तो तीन सौ रुपए अतिरिक्त जमा करने पड़ेंगे ।
उसनेे अपनी फटी ही जेब से तीन सौ सौ के नोटों को होंठों पर उंगली रख कर तीन चार बार गिना और थमा दिए काउंटर वाले साहब को।
थोड़ी देर में ही डॉक्टर बुक की गई कैब की तरह हाजिर हो गया मरीज को देखा स्टैथस्कोप छाती पर घुमाया, वीपी देखा और कहकर चला गया कि तुरंत आईसीयू में भेजो ।
उसनेे पास ही जमीन पर लेटे पिता के सिर को सहलाते हुए काउंटर वाले साहब से पूंछा- भाई साहब ये आईसीयू क्या होता है,
काउंटर वाले साहब ने बड़ी ही नर्म और सरल भाषा में समझाया कि यहां सभी सुविधाएं होती हैं और मरीज़ जल्दी ही ठीक हो जाता है।
उसनेे फिर पूछा - भाई साहब क्या खर्चा आयेगा ?
उसनेे बताया भइया आठ हजार रुपए रोज आईसीयू की फीस,दवा और जांचों के अलग, स्पेशलिस्ट डॉक्टर आयेगा तो एक बार की फीस एक हजार... कुल मिलाकर 15-20 हजार रोज ।
उसनेे अपनी जेब से कुछ निकाला और मन ही मन बुदबुदाया- यह जो मां ने आते आते जेबर दिया है उसे बेचने पर दो दिन का ही इंतजाम होगा !
चलो भगवान करेगा पापा दो दिनों में ही ठीक हो जायेंगे।
उसनेे काउंटर पर ही अपनी मजबूरी बताई।
लेकिन भईया यहां तो नगद पैसे देने पड़ते हैं।
बाहर जाकर औने-पौने दाम में बेचकर काउंटर पर पैसे जमा कराए और कर्मचारी लेकर चले गए आईसीयू में पापा को।
वह बाहर कुर्सी पर बैठ ही पाया था कि आइसीयू के बाहर आते हुए कर्मचारी ने आवाज लगाई- रामप्रसाद के साथ कौंन है ओमकार चौंककर खड़ा हो गया और बोला जी साब,
जल्दी से इक्कीस सौ रुपए दो खून की जांच करानी है उसने चार पांच बार रुपया गिनते हुए दिये और फिर कुर्सी पर बैठ गया थके हुए पैरों को कुर्सी पर रख ही रहा था कि फिर आवाज लगी दवाईयों का पर्चा थमाकर मेडिकल स्टोर की ओर इशारा करते हुए कहा कि जल्दी दवायें लाओ।
बेचारा दवायें लेने पहुंच गया दवाओं का पर्चा देखा तो उसे चक्कर सा आ गया चार हजार की दवायें एक छोटी सी थैली में।
उसे लगा कि उसकी जेब की सामर्थ्य चीख चीखकर कह रही है कि कैसे बचायेगा अपने पापा को ।
सबेरा होते होते पापा की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ लेकिन संचित पैसों के साथ उसकी मां के हाथों की चूड़ियां आईसीयू की भेंट चढ़ गईं।
सरकारें हमेशा से स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर बेहद संजीदा रही हैं और करोड़ों रुपए आम आदमी के स्वास्थ्य लाभ और शिक्षा में सुधार के लिए बहा रही हैं, मगर स्वास्थ्य विभाग की दुर्दशा इन दिनों किसी से छुपी नहीं है यह इज्जतदार प्रोफेशन मरीज के स्वास्थ्य लाभ के लिए नहीं बल्कि संचालक या डॉक्टर के ब्यक्तिगत लाभ का केंद्र बन गये हैं ।
धनबल के बल पर लोग नर्सिंग होम का संचालक बन बैठे हैं। इसके भी दोषी यह लोग नहीं है। आखिर पैसा किसे प्यारा नहीं होता जब कोई धंधा नहीं चला तो लोगों की जिंदगी से खेलने का धंधा खोल लिया,असल में इसके वास्तविक दोषी स्वास्थ्य विभाग के वही जिम्मेदार हैं जो इन्हें नर्सिंग होम का लाइसेंस बांटते हैं। आपको बता दें कि इनका भी बड़ा भारी नेटवर्क है यह विभागीय ऑफिस को धनबल पर पूरी तरह से गिरफ्त में लिए हैं वहां चांदी के जूते के आगे पूरा अमला शांत रहता है ,और फिर शुरू होता है बिना किसी छेड़छाड़ के लूट का धंधा।
फिर चाहे इसमें किसी की जान जाए तो जाए।
आपको बता दें कि हमारे ही आसपास ऐसे ही तमाम निजी चिकित्सालयों की संख्या है,जिनका उद्देश्य आप के मरीज की बेहतरी नहीं बल्कि अपनी स्वयं की जेबें भरना है वह इसके लिए आपके मरीज की सेहत के साथ किसी भी हद तक जा सकते हैं, अधिकतर निजी चिकित्सालयों के मानकों का कोई अता पता नहीं है फिर भी इन्हें स्वास्थ्य विभाग से लाइसेंस मिल जाता है आखिर कैसे ?
इन निजी चिकित्सालयों का सबसे बड़ा टारगेट होती हैं गर्भवती महिलाएं, मामूली से फ्रेक्चर के मरीज जिन्हें दलालों के माध्यम से अपने निजी चिकित्सालयों में बुलाकर लूटा जाता है। बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में गुमराह करके,उसे जान का खतरा बताकर मरीज के तीमारदारों को डराया जाता है। ताकि वह ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाएं और उनसे मोटी रकम ऐंठी जाए।बड़े बड़े विशेषज्ञों के बोर्ड लगाए ये नर्सिंग होम सिर्फ एक या दो सामान्य नर्सों के भरोसे अपना निजी चिकित्सालय चलाते हैं और स्वास्थ्य महकमा इन पर हमेशा मेहरबान रहता है।यही वजह है कि आये दिन विपरीत परिस्थितियों में परिजनों के आक्रोस के शिकार भी होते हैं।
न पर्याप्त स्टाफ न पर्याप्त संसाधन,न ही समुचित सेवाएं फिर इतनी मोटी फीस किस बात की लेते हैं स्थानीय प्रशासन के लिए चाहिए कि निस्वार्थ भाव से प्रति सप्ताह नर्सिंग होम और आईसीयू का औचक निरीक्षण किया जाना चाहिए और मरीजों से ऐंठी जा रही धनराशि के विरुद्ध क्या लागत आती है और क्या सुविधाएं दी जा रही है उनका गहन परीक्षण जनहित में अत्यंत ही आवश्यक है।