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Thursday, January 16, 2020

चंबल नदी के किनारे जुबान पर चढ़ा और फिर देश दुनिया में छा गया गजक का स्वाद

ग्वालियर। मकर संक्रांति का पर्व बुधवार को पूरे देश व ग्वालियर चंबल संभाग में श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाएगा। मकर संक्रांति के अवसर पर चंबल के लोगों ने नदी घाटों पर स्नान कर दान पुण्य किया। पर्व स्नान के लिए प्रशासन द्वारा नदी घाटों पर आवश्यक सुरक्षा इंतजाम तथा बैरीकेटिंग की व्यवस्था की गई है। लेकिन मंकर संक्रांति पर कुछ ऐसी चीजों का महत्व है जिनके बिना इस त्योहार की चमक ही फीकी पड़ जाती है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे है उस मिठाई के बारे में।
हर जुबान पर होती है गजक की बात:-
गजक आप देश के किसी कोने में खरीदें और खाएं,लेकिन इसका स्वाद जुड़ा है मुरैना से। मुरैना की गजक हो तो बात ही कुछ और होती है। तिल को कूटकर,कभी शकर और कभी गुड़ के साथ मिलाकर बनती है बेहतरीन गजक। गजक का जायका जहां दूर-दूर से लोगों को यहां खींच लाता है, वहीं इसके स्वाद के दीवाने इसे अपने साथ दूर-दूर तक ले गए हैं। आज शायद ही कोई जगह हो, जहां आपको गजक न मिल पाए। यूं तो गजक को जुबान पर मिठास भरने के लिए खाया जाता है तभी इसकी बात हर जुबान पर होती है, पर इस स्वाद की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। इसके बनने ... मानी जाती है। गजक का स्वाद चंबल नदी के किनारे जुबान पर चढ़ा। और फिर देश दुनिया में छा गया। इस स्वाद को पाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है।
75 साल पुराना है गजक का करोबार:- 
मुरैना की गजक को विशिष्टता चंबल के पानी से ही मिली। इसलिए राज्य सरकार ने भी इसकी खास अंदाज में ब्रांडिंग का ऐलान किया है। इसके लिए 6 और 7 दिसंबर 2019 को 'गजक मीठोत्सव-2019 का आयोजन किया जा चुका है। अब इसे प्रदेश के प्रमुख हवाई अड्डों पर उपलब्ध कराने की दिशा में राजनीतिक और प्रशासनिक प्रयास किए जा रहे हैं। कारोबारी मानते हैं इससे गजक कारोबार को आगे ले जाने में मदद मिलेगी। जिले में गजक कारोबार 75 साल पुराना है। जिले में गजक का कारोबार करने वाले व्यापारियों की संख्या 1000 के आसपास है। 2000 के करीब लोग इसके निर्माण और खुदरा बिक्री से भी जुड़े हैं। प्रतिदिन जिले में 50-60 क्विंटल से गजक की खपत होती है।
15 करोड़ का व्यवसाय:-
मुरैना शहर में ही 250 के करीब कारोबारी हैं। ठेलों पर गुमटियों पर कारोबार करने वाले इसमें शामिल नहीं है। ऐसे में रोजाना 6000 किलो तक गजक की बिक्री होती है। 300 रुपए से यह कारोबार रोजाना 18 लाख रुपए से अधिक का होता है। एक माह में 5 करोड़ से ज्यादा का कारोबार होता है। चार माह में केवल मुरैना शहर से 20-22 करोड़ का व्यवसाय होता है। जिले में भी 10-15 करोड़ का कारोबार होता है।
चंबल के पानी की महिमा:-
गजक की श्रेष्ठता का श्रेय चंबल के पानी को ही है। 75 साल पहले जब गजक कारोबार की शुरूआत हुई तब कड़क और मोटी पपड़ी बनती थी। गुड़ और तिल को मिलाकर बनने वाली गजक की जब मांग बढऩे लगी तो गुड़ की गजक बननी शुरू हुई। निखार के लिए शक्कर की गजक भी भी खस्ता पपड़ी के तौर पर बनने लगी। खस्तापन का सूत्र भुनी हुई गजक और गुड़ की चासनी के मिश्रण को कूटने की कला पर निर्भर है।
मीठोत्सव से बढ़ी पहचान और मांग:-
मुरैना की गजक से मप्र सरकार तक प्रभावित है। इसीलिए बजट सत्र 2019 में इसकी ब्रांडिंग का ऐलान किया। इसी कड़ी में कलेक्टर प्रियंका दास के प्रयासों से 6 व 7 दिसंबर 2019 को गजक मीठोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें ब्रांडिंग के लिए खास तौर से तैयार लोक नाटक, लोकगीत और लोकनृत्य सहित उसके इतिहास पर प्रकाश डाला गया। गजक मीठोत्सव और इसमें पहली बार कवियत्री सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।
कैसे तैयार होती है मुंह में घुल जाने वाली गजक:-
बढिय़ा गजक के लिए अच्छा गुड़ और तिली पहली शर्त है। बराबर मात्रा में गुड़ और तिल का मिश्रण तैयार होता है। गुड़ की चासनी भट्टी पर बनाई जाती है और तिल को कढ़ाई में भूना जाता है। दोनों में 8-10 मिनट का समय लगता है। गुड़ की चासनी को एक पत्थर की सिल पर डालकर ठंडा किया जाता है। इस पेस्ट को फेंटने के बाद तिली मिलाकर पहले हाथ से मिलाते हैं। इस मिश्रण को पत्थर की सिल पर फैलाकर लकड़ी के हथौड़ों से कूटा जाता है। इससे तैयार होने वाली